Tuesday, June 10, 2025

पॉक्सो एक्ट : यौन उत्पीड़न को साबित करने शारीरिक चोट दिखाना जरूरी नहीं, आरोपी को बीस साल की सजा।

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बिलासपुर : रायगढ़ जिले की नौ वर्षीय बालिका के यौन उत्पीड़न के मामले में पॉक्सो एक्ट में आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। जेल में बंद आरोपी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। वहीँ अब इस मामले पर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाईकोर्ट ने 9 वर्षीय नाबालिग के अपहरण और यौन उत्पीड़न के लिए दोष सिद्धि को बरकरार रखा है। कोर्ट ने फैसले में कहा कि पीड़िता की गवाही और साक्ष्य पॉक्सो अधिनियम के तहत दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त थी। हालांकि कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा को 20 वर्ष के कठोर कारावास में परिवर्तित कर दिया है।

पीड़िता ने पहचाना था आरोपी को :

कोर्ट ने पाया है कि पीड़िता ने अपने बयान के दौरान अपीलकर्ता की पहचान की थी। हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 419, 363, 365 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत अपीलकर्ता की दोष सिद्धि को बरकरार रखा है। हालांकि आजीवन सजा को घटाकर 20 साल के कठोर कारावास में बदल दिया। ट्रायल कोर्ट के जुर्माने को बरकरार रखा है। इस मामले में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है। यह घटना 1 मई, 2020 की है। पीड़ित 9 वर्षीय लड़की, रायगढ़ जिले के अपने गांव में एक प्राथमिक विद्यालय के पास खेल रही थी।

आरोपी को मिला 20 साल का कठोर कारावास :

पुलिस की पोशाक जैसी खाकी वर्दी पहने अपीलकर्ता अजीत सिंह पोरते ने पीड़िता से संपर्क किया और पुलिसकर्मी होने का डर दिखाते हुए जबरन मोटरसाईकिल पर अपहरण करके ले गया था। पीड़िता को एक सुनसान खेत में ले जाकर आरोपी ने उसका यौन उत्पीड़न किया। बाद में पुलिस अधिकारियों ने रोती पीड़िता को मोटरसाइकिल पर ले जाते हुए आरोपी को पकड़ लिया था। पीड़िता के पिता ने लिखित शिकायत दर्ज कराई थी।

पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर जांच के बाद, अपीलकर्ता पर आईपीसी की धारा 419, 363 (अपहरण), 365 (गलत तरीके से ले जाने) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत आरोप लगाए। 28 अगस्त 2021 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, घरघोड़ा ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जिसे आरोपी ने अपील में चुनौती दी थी।

पॉक्सो एक्ट साबित करने चोट जरूरी नहीं :

प्राथमिक मुद्दा यह था कि क्या नाबालिग पीड़िता की गवाही, सहायक साक्ष्य के साथ, दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त थी। कानूनी सिद्धांतों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि पीड़िता की एकमात्र गवाही के आधार पर दोष सिद्धि हो सकती है। पीड़िता की आयु की पुष्टि उसके जन्म प्रमाण पत्र के माध्यम से की गई, जिसमें जन्म तिथि 25 अक्टूबर,2010 थी। अपराध के समय आयु 9 वर्ष रही। शारीरिक चोट नहीं दिखी, लेकिन न्यायालय ने कहा कि पॉक्सो एक्ट में यौन उत्पीड़न को साबित करने शारीरिक चोटें अनिवार्य नहीं हैं। इस तरह आरोपी अपनी सजा से बच नहीं सका।

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