रायगढ़। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में 4 साल का छयंग नायक SMA टाइप 1 (स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी) की बीमारी से पीड़ित है। किसान माता-पिता ने छयंग को चंदा और लकी ड्रा की मदद से 16 करोड़ रुपए के इंजेक्शन लगवाए, लेकिन कुछ ज्यादा फायदा नहीं हुआ। वह फिर से पहले जैसी स्थिति में लौट रहा है।
छयंग नायक के हाथ-पैर काम करना बंद कर दिए हैं। वह बोल भी नहीं सकता, फिर से कमजोर होने लगा है। छयंग के मां-बाप फिर से परेशान होने लगे हैं। उनका कहना है कि बच्चे की जिंदगी ऊपर वाले के हाथ में है। सरकार से भी मदद नहीं मिल रही है। मां कहती हैं कि बेटे को देखकर बहुत दुख होता है।मुबंई में छयंग को 14 महीने की उम्र में 16 करोड़ का इंजेक्शन लगाया गया था।

क्या है छयंग की बीमारी की पूरी कहानी ?
छयंग पुसौर ब्लॉक के पुरंगा गांव का है। पैदा होने के 6 महीने बाद उसके हाथ-पैर और कमर काम करना बंद कर दिए। माता-पिता किसान हैं। इलाज के लिए कई अस्पतालों में ले गए, लेकिन वहां ठीक नहीं हुआ।बीमारी के बारे में पता चलते ही परिवार चिंता में आ गया, क्योंकि एक इंजेक्शन 16 करोड़ का था।
परेशान माता-पिता ने क्राउड फंडिंग के जरिए उसका इलाज कराने की कोशिश की, लेकिन सिर्फ 3 लाख 39 हजार 304 रुपए ही जुटा पाए। इसी बीच एक दवा कंपनी के लकी ड्रा में छयंग का नाम निकला। 17 फरवरी 2022 को 14 महीने की उम्र में उसे मुंबई के एक अस्पताल में जोलगेनेस्मा इंजेक्शन लगाया गया। छयंक को 14 महीने की उम्र में 16 करोड़ का ज्योलगेस्मा इंजेक्शन मुंबई में लगा था।
हाथों में आया मूवमेंट और कुछ बोलने भी लगा
इलाज के बाद परिवार समेत छयंग अपने घर आ गया। धीरे-धीरे उसके शरीर पर सुधार आने लगा। पहले की अपेक्षा हाथ अधिक मूवमेंट होने लगा। थोड़ी बहुत बोलने भी लगा। बैठना भी शुरू कर दिया। परिवार को लगा कि अब उनका बेटा अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
इंजेक्शन लगने के दो साल बाद भी छयंग के पैरों में ताकत नहीं आई है। छयंग के माता-पिता उसे गोद में उठाकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं। दूसरे बच्चों के साथ खेलना पसंद है, लेकिन खुद से खड़े नहीं हो पा रहा है।

दूसरे बच्चों को चुपचाप खेलते देखते रहता है
छयंग की दो बड़ी बहनें हैं। एक 9 साल की और दूसरी 7 साल की। वे अपने भाई के साथ खेलती हैं, लेकिन जब बच्चे घर के बाहर खेलते हैं, तो छयंग दूर से बैठकर उन्हें देखता है। पैरों में ताकत न होने के कारण वह न तो खुद खड़ा हो पाता है और न ही कहीं जा पाता है।
परिजन उसे खुश रखने के लिए उसे गोद में लेकर हर जगह ले जाते हैं।
हर 6 महीने में जाना पड़ता है मुंबई
इंजेक्शन लगने के बाद भी छयंग को हर 6 महीने में मुंबई इलाज के फीडबैक के लिए जाना पड़ता है। वहां डॉक्टर उसकी कंडीशन को देखते हैं। अब तक उसे 4-5 बार ले जाया जा चुका है, लेकिन आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं होने से छयंग के परिजन भी अब परेशान होने लगे हैं।
हांलाकि फिजियोथेरेपी के लिए गांव से रायगढ़ अक्सर आते हैं। उसे दवा के रूप में विटामिन, कैल्शियम और प्रोटीन दिया जाता है।
पिता आर्थिक मदद के लिए सरकार को लिख चुके हैं पत्र
छयंग के पिता नरेन्द्र कुमार नायक का कहना है कि, एसएमए बीमारी से पीड़ित बच्चों के लिए बिहार शासन हर महीने 3 हजार रुपए पालन पोषण के लिए देती है। हमने भी 3 महीने पहले छत्तीसगढ़ सरकार को आर्थिक मदद के लिए पत्र लिखा था, लेकिन सहायता के लिए अब तक कोई मदद नहीं मिल सकी है।

बेटे को देखकर बहुत दुख होता है- मां
छयंग की मां पद्मनी नायक ने बताया कि, छयंग अब भी बहुत संघर्ष कर रहा है। उसे इस तरह संघर्ष करते देखकर बहुत दुख होता है। उसके उम्र के बच्चे स्कूल जा रहे हैं, लेकिन वो अपने जीवन से संघर्ष कर रहा है।