कोरबा :- कोरबा ज़िले के पोड़ी उपरोड़ा विकासखंड से आई यह खबर न सिर्फ प्रशासन की संवेदनहीनता उजागर करती है, बल्कि हमारे सिस्टम में जड़ जमा चुके भ्रष्टाचार की गूंज भी बन जाती है।
अमीषा धनवार, एक गरीब मां, जिसने अपने बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए एक साल तक कार्यालय के चक्कर काटे। जब प्रमाण पत्र बना तो उसमें त्रुटियां थीं। लेकिन त्रुटि सुधारने की बजाय, वहाँ पदस्थ बहरी झरिया की एक ANM सिस्टर ने उससे 500 रुपए की मांग की। “जब तक 500 रुपए नहीं लाओगी, तब तक जन्म प्रमाणपत्र नहीं मिलेगा” – यही जवाब मिला उसे।
500 रुपए के लिए एक मां का दर्द – जब राशन का चावल बिक गया और सिस्टम मौन रहा
गरीबी कोई नई बात नहीं है, पर जब सिस्टम गरीब की मजबूरी पर सौदा करता है, तो वो सिर्फ अन्याय नहीं होता – वो अपराध होता है।अमीषा के पास ना तो नौकरी है, ना आय का कोई ठोस जरिया। वह उन लाखों गरीबों में से है जो सरकार के दिए चावल से दो वक्त का खाना जुटाती हैं।
लेकिन एक मां हार नहीं मानती – उसने अपनी उम्मीद, अपनी भूख, और अपने बच्चे की थाली का चावल बाज़ार में बेच दिया… ताकि वह 500 रुपए इकट्ठा कर भ्रष्ट सिस्टर को देकर अपने बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र पा सके। क्योंकि उसके लिए वह कागज़ नहीं, बेटे का भविष्य था।
सोचिए – जहां सरकारी योजनाएं गरीबों की मदद के लिए बनी हैं, वहीं एक मां को अपने अधिकार के लिए अपने बच्चे का निवाला बेचना पड़ा। ये सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं – ये अमानवीयता है। इंसानियत का इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है? यह मामला सिर्फ एक अमीषा का नहीं, यह उन तमाम गरीबों की कहानी है जिनकी मजबूरी पर सरकारी तंत्र में बैठे लोग कारोबार करते हैं।
प्रशासन के द्वारा इस घटना की जांच कर दोषी को तत्काल निलंबित कर सख्त कार्यवाही किया जाए, अमीषा धनवार को न्याय दिलाकर उसके परिवार को आर्थिक सहायता दी जाए।
यह सवाल आज हम सभी से है: क्या गरीब की आंसू की कीमत सिर्फ 500 रुपए है? दोषी पर कार्यवाही हो ताकि अमीषा जैसी किसी और मां को अपना चावल बेचकर इंसाफ न खरीदना पड़े। इंसाफ सिर्फ अदालतों में नहीं, ज़मीर में भी मिलना चाहिए।