Monday, June 9, 2025

CG KORBA:तानाखार जमीन घोटाला: शासकीय भूमि पर भूमाफिया को लाभ, पटवारी से लेकर एसडीएम तक की संलिप्तता संदेहास्पद…!

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छत्तीसगढ़/कोरबा/पोड़ी उपरोड़ा।
तानाखार गांव में शासकीय पट्टे की भूमि पर हुए ज़मीन घोटाले ने प्रशासन की साख पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। भूमाफिया और राजस्व विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से आदिवासियों की पैतृक जमीन हड़पने की साजिश को लेकर जिला प्रशासन में हड़कंप मच गया है। शिकायतकर्ता पवन सिंह ने कलेक्टर को प्रस्तुत आवेदन में पटवारी, राजस्व निरीक्षक, तहसीलदार और SDM को खुलेआम फर्जीवाड़े का जिम्मेदार ठहराते हुए इनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई की मांग की है।
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“सुशासन” के नाम पर भूमाफिया को संरक्षण?

जहां एक ओर सरकार “सुशासन पर्व” मना रही है, वहीं दूसरी ओर पोड़ी उपरोड़ा का राजस्व अमला भूमाफियाओं को सरकारी जमीन पर कब्जा दिलवाने में जुटा है। यह प्रकरण न सिर्फ आदिवासी अधिकारों का खुला हनन है, बल्कि राज्य शासन की छवि को जानबूझकर नुकसान पहुंचाने की साजिश भी प्रतीत होती है।

पटवारी से लेकर एसडीएम तक की साजिश बेनकाब

शिकायतकर्ता पवन सिंह के अनुसार, ग्राम तानाखार (प.ह.न. 46) में खसरा नंबर 731/6 और 732/2 की ज़मीन पर उनका संयुक्त परिवार 60–70 वर्षों से काबिज है। यह भूमि शासकीय मद की थी, जिसे नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए भूमाफिया तौकीर अहमद पिता सलाउद्दीन के नाम कर दिया गया।

तत्कालीन पटवारी जितेश जायसवाल, राजस्व निरीक्षक, तहसीलदार विनय कुमार देवांगन, और एसडीएम तुलाराम भारद्वाज पर आरोप है कि इन्होंने जानबूझकर शासकीय भूमि के दस्तावेजों में कूटरचना कर अधिग्रहित जमीन को फर्जी सीमांकन के माध्यम से निजी व्यक्ति को सौंप दिया।

फर्जी आदेश, फर्जी सीमांकन और आदिवासियों का उत्पीड़न..?

शिकायत में बताया गया है कि:

खसरा नं. 731/9 रकबा 0.619 हे. जल संसाधन विभाग द्वारा अधिग्रहित भूमि है, जिसे बेचा नहीं जा सकता।

फिर भी इस भूमि को तौकीर अहमद के नाम पर दर्ज कराया गया।

तहसील और एसडीएम न्यायालयों ने गलत दस्तावेजों के आधार पर कब्जे का आदेश दिया।

आदिवासी चन्द्र कुमार और रामकुमार के खिलाफ गलत फैसले दिए गए।

पटवारी ने कृषकों की अनुपस्थिति में सीमांकन कर कब्जा दिलाया।

ग्राम पंचायत और ग्रामीणों के विरोध के बावजूद भूमाफिया सीमेंट पोल, फेंसिंग और छत निर्माण की कोशिश कर रहा है।

क्या आदिवासी विरोधी मानसिकता में काम कर रहे हैं अफसर?

क्या यह मामला सिर्फ लापरवाही है या जानबूझकर आदिवासियों को उनकी ज़मीन से बेदखल करने की सुनियोजित साजिश? शिकायत में इस बात का विशेष उल्लेख है कि अधिकारियों ने तथ्यों को जानते हुए भी भूमाफिया का पक्ष लिया और आदिवासी कृषकों को धमका कर, गुमराह कर जमीन से बेदखल करने का प्रयास किया।

अब निगाहें कलेक्टर पर – क्या भ्रष्टाचारियों पर गिरेगी गाज?

कलेक्टर डॉ. अजित वसंत के समक्ष प्रस्तुत इस गंभीर शिकायत में अब यह देखने वाली बात होगी कि वे इस भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे अधिकारियों पर किस प्रकार की जांच और अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हैं।

अगर दोषियों पर त्वरित कार्रवाई नहीं हुई तो यह प्रकरण छत्तीसगढ़ शासन की प्रशासनिक पारदर्शिता पर बड़ा धब्बा बन सकता है।

ग्रामीणों की चेतावनी – यदि न्याय नहीं मिला तो करेंगे जनांदोलन

ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर शासकीय भूमि के इस फर्जीवाड़े में शामिल अफसरों पर कार्रवाई नहीं हुई तो वे सड़कों पर उतरकर जमीन बचाओ आंदोलन छेड़ेंगे। यह केवल ज़मीन का मामला नहीं, बल्कि आदिवासी अस्मिता और हक की लड़ाई है।

यह मामला छत्तीसगढ़ के ग्रामीण प्रशासन की सच्चाई को उजागर करता है – जहां कानून की किताबें रखी जाती हैं, लेकिन लागू वही होता है जो “मुनाफा” देता है.?

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