रायपुर। नवा रायपुर के सेक्टर-24 में लगभग 600 करोड़ की लागत से बने 92 आलीशान सरकारी बंगले बीते एक साल से अपने मेहमानों का इंतजार कर रहे हैं। इन बंगलों को मुख्यमंत्री, मंत्रियों, विधानसभा अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष और वरिष्ठ अधिकारियों के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है। हालांकि, हकीकत यह है कि इन भव्य बंगलों में से 88 अब भी खाली हैं, और इनके रखरखाव पर हर महीने टैक्स के लाखों रुपए खर्च हो रहे हैं।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, सभी मंत्रियों और 40 से अधिक अधिकारियों को बंगले आवंटित किए जा चुके हैं, मगर केवल 4 मंत्री – रामविचार नेताम, केदार कश्यप, लक्ष्मी राजवाड़े और दयालदास बघेल ही अब तक नवा रायपुर शिफ्ट हुए हैं। स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल 9 मई को गृह प्रवेश करने वाले हैं। बाकी मंत्री और अधिकारी पुराने रायपुर के बंगलों को छोड़ने के मूड में नहीं दिख रहे हैं।
मंत्रियों की दलील है कि नवा रायपुर में शिफ्ट होने से वे जनता, समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं से कट जाएंगे। कुछ सुरक्षा चिंताओं का भी हवाला दे रहे हैं। वहीं, वरिष्ठ अधिकारी नवा रायपुर के सुनसान वातावरण और सीमित सुविधाओं के चलते वहां रहने से बच रहे हैं। इसके चलते जनता की गाढ़ी कमाई से तैयार किए गए ये बंगले खाली पड़े हैं और रखरखाव का खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है।
834 करोड़ तक पहुंची लागत, मगर बसाहट अधूरी
शुरुआत में इस परियोजना की लागत 591 करोड़ रुपए आंकी गई थी, जो अब बढ़कर 834 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है। हालांकि, राजभवन को छोड़कर बाकी सभी बंगले पूरी तरह तैयार हैं। सरकार का कहना है कि वीआईपी निवासियों की बसाहट से नवा रायपुर में निवेश और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और शहर की रौनक लौटेगी। मंत्रालय समेत अधिकतर सरकारी विभागों और आयोग-निगमों के दफ्तर पहले ही नवा रायपुर में शिफ्ट हो चुके हैं। लेकिन बंगलों की आबादी अब भी सपना बनी हुई है।
पांच सितारा जैसी सुविधाएं, फिर भी सूना माहौल
इन बंगलों को किसी फाइव स्टार होटल की तर्ज पर बनाया गया है। मंत्रियों के लिए डेढ़-डेढ़ एकड़ में फैले बंगलों से लेकर विधानसभा अध्यक्ष के लिए बने 3.19 एकड़ के भव्य आवास तक, हर सुविधा मौजूद है। सुरक्षा के भी कड़े बंदोबस्त किए गए हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय अपने नवनिर्मित सरकारी निवास में गृह प्रवेश कर चुके हैं, जबकि उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा और अरुण साव सहित अन्य 10 मंत्रियों को भी बंगले आवंटित किए जा चुके हैं। बावजूद इसके, बसाहट के नाम पर महज सन्नाटा पसरा है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार इन आलीशान बंगलों को आबाद कर पाएगी या फिर जनता के पैसे की यह बर्बादी यूं ही जारी रहेगी?