बिलासपुर । छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय के उस फैसले को निरस्त कर दिया, जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 497 के तहत एक व्यक्ति को व्यभिचार का दोषी ठहराया गया था। मामला शादी का झूठा वादा कर अविवाहित महिला के साथ यौन संबंध बनाने से जुड़ा था। हाईकोर्ट ने धारा 497 को असंवैधानिक करार देते हुए आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
पीड़िता ने 10 जनवरी 2015 को आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज की, जिसमें दावा किया गया कि छह साल पहले आरोपी ने उससे गुप्त रूप से शादी की और वादा किया था कि अपनी छोटी बहन की शादी के बाद वह रीति-रिवाजों से दोबारा शादी करेगा। इस दौरान पीड़िता कई बार गर्भवती हुई, लेकिन आरोपी ने हर बार गर्भपात कराया। बाद में पीड़िता को पता चला कि आरोपी ने डेढ़ साल पहले दूसरी महिला से शादी कर ली थी। इस आधार पर आरोपी के खिलाफ भादंवि की धारा 376 (बलात्कार) के तहत मामला दर्ज किया गया।
जांच के बाद धमतरी सत्र न्यायालय में आरोप-पत्र दायर हुआ। शुरू में धारा 376 के तहत आरोप तय किए गए, लेकिन सुनवाई के बाद आरोपी को धारा 497 (व्यभिचार) के तहत दोषी ठहराया गया। इस फैसले के खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील दायर की। जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की एकल पीठ ने कहा कि धारा 497 के तहत व्यभिचार का अपराध तभी लागू होता है, जब कोई तीसरा व्यक्ति किसी विवाहित महिला के पति की सहमति के बिना उसके साथ यौन संबंध बनाए। इस मामले में पीड़िता अविवाहित थी, और उसके पति की ओर से कोई शिकायत नहीं थी।
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में धारा 497 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव का निषेध), और 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। इन आधारों पर हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया और अपीलकर्ता को सभी आरोपों से बरी कर दिया।